क्या विकास पागल हो गया है…!
उमाकांत त्रिपाठी
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,  नई दिल्ली। इन दिनों सोशल मीडिया से लेकर आम जन तक एक जुमला बड़ी तेजी से लोकप्रिय हुआ है। न केवल लोकप्रिय हुआ है बल्कि भाजपा की पेशानी पर बल ला दिया है। जिस तरह से इसको सोशल मीडिया पर शेयर किये जा रहे हैं और लाइक्स मिल रहे हैं। ऐसे में एक सवाल तो बनता ही है कि क्या वाकई में विकास पागल हो गया है...! तीन साल पहले जिस मोदी नाम की सुनामी ने पूरे विपक्ष को तहस नहस कर दिया था आज अजीब सी परिस्थितियों में फंसती दिखाई दे रही है। याद करिए 2014 का लोकसभा चुनाव जब कच्छ से कामरूप तक व कन्या कुमारी से कश्मीर तक पूरे देश में बस एक ही आवाज गूंज रही थी हर हर मोदी, घर घर मोदी। लेकिन एक साल पहले नोटबंदी और अब जीएसटी की मार ने भगवा दल की पेशानी पर बल ला दिया है। दोनों ही काम अच्छी नीयत से किये गये थे, इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन यह आम जन की परेशानी बढ़ाने वाले साबित हो रहे हैं। यही कारण है कि गुजरात से शुरू हुआ विकास पागल हो गया है वाला जुमला पूरे देश में ट्रेंड कर रहा है।
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,  अब जबकि गुजरात व हिमाचल विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। ऐसे में विकास पागल हो गया है का जुमला सत्ताधारी दल के गले में हड्डी की तरह अटक गया सा प्रतीत हो रहा है। यूं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा के चाणक्य के रूप में ख्याति अर्जित कर चुके भाजपा अध्यक्ष अमित शाह हर चुनाव को प्रतिष्ठा का मुद्दा बनाकर लड़ते हैं। लेकिन इस बार मामला वाकई व्यक्तिगत प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ है। गुजरात दोनों का ही गृहराज्य है। पिछले बीस सालों से गुजरात में सत्ता पर काबिज भाजपा के लिए यह चुनाव जीतना कितना महत्वपूर्ण है यह इसी से जाना जा सकता है कि पिछले 38 दिनों में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने गृहराज्य का दौरा कर चुके हैं। इस दौरान उन्होंने राज्य के लिए हजारों करोड़ के विकास योजनाओं की सौगात की बारिश कर चुके हैं।
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,  8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नोटबंदी की घोषणा को काले धन के ऊपर प्रहार के रूप में लिया गया। आम जनता ने इसे मोदी का मास्टरस्ट्रोक माना और तमाम परेशानियों को झेलकर भी उनके इस निर्णय के साथ खड़ी रही। हालांकि इससे कितना कालाधन खत्म हुआ यह सवालों के घेरे में है। बहुतों का मानना है कि बैंककर्मियों की मिलीभगत से यह एक फ्लाप शो साबित हुआ। विपक्ष इसे अब एक बड़ा स्कैम साबित करने पर तुला हुआ है। खुद भाजपा के एकाधिक नेता भी मोदी सरकार पर हमलावर हैं।
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,  रही बात जीएसटी की तो यह फिलहाल लोगों की परेशानी बढ़ाने वाला ही साबित हो रहा है। जीएसटी की मार आम जनता से लेकर व्यापारियों पर भरपूर पड़ी है। महंगाई अपने चरम पर है। व्यापारियों को भाजपा का बेस वोट माना जाता रहा है लेकिन जीएसटी भाजपा से उनके मोहभंग का कारण बनता जा रहा है। हम यह तो नहीं कहेंगे कि मोदी सरकार पूरी तरह से अलोकप्रिय हो गई है लेकिन इतना तो दावे के साथ कहा जा सकता है कि दबी जुबान ही सही लेकिन लोग बाग अंगुलियां जरूर उठाने लगे हैं। भाजपा की चिंता का असल कारण भी यही है।
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,  आर्थिक मंदी पर पूर्व वित्त मंत्री व भाजपा नेता यशवंत सिंह द्वारा मोदी सरकार पर किये गये प्रहार से जहां सरकार की किरकिरी हुई वहीं इससे विपक्ष के आरोपों को भी खासा बल मिला। जिस नोटबंदी व जीएसटी से अर्थव्यवस्था के सरपट दौड़ने की आकांक्षा की गई थी उसके मुंह के बल गिरने से सवाल तो उठेंगे ही। हर साल दो करोड़ नौकरी देने का वादा कर सत्ता में आई मोदी सरकार इस मोर्चे पर भी बुरी तरह से विफल साबित हुई है। ऐसे में क्या वाकई विकास पागल हो गया है? फिलहाल अभी यह कहना जल्दबाजी होगी लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि धीरे धीरे ही सही लेकिन सुरसा के मुंह की तरह बढती महंगाई और बेरोजगारी की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। अगर जल्द ही सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो भारी बहुमत से जीतकर सत्ता में आई मोदी सरकार को भी अलोकप्रिय होने में देर नहीं लगेगी।
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,  इससे इतर जिस गुजरात से विकास पागल हो गया है का जुमला उठा है, उसकी इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि चिकित्सा के क्षेत्र में अहमदाबाद का सिटी अस्पताल एशिया का सबसे बड़ा अस्पताल है। ताजमहल, बर्फ से ढके पहाड़, खूबसूरत झीलें या झरने नहीं होने के बावजूद टूरिज्म के क्षेत्र में पूरे देश के पर्यटन की विकास दर का दोगुना 4 प्रतिशत की विकास दर लाने वाले गुजरात का पागलपन अपने आप में बहुत कुछ कहता है। गुजरात में स्थित जामनगर रिफाइनरी विश्व की सबसे बड़ी रिफाइनरी है। 2002 के बाद गुजरात से एक भी दंगे की खबर नहीं आई है।
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,  एक सच यह भी है कि मोदी सरकार के खिलाफ जय शाह मामले को छोड़ दें तो अभी तक भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं लगा है। इस लिहाज से अगर देश किसी चीज में पीछे है तो वह है भ्रष्टाचार और घोटाले जिसकी वजह से कुछ ‘खास लोगों का विकास’ रुक गया है। कहीं इसीलिए तो विकास पागल नहीं हो गया है। ऐसे में अगर विकास पागल हो गया है तो उसे पागल ही रहने देना चाहिए, क्योंकि देश की सेहत के लिए यह पागलपन संभवतः अधिक फायदेमंद है।