खेलो भारत नीति - 2025: भारत के खेल परिदृश्य को पुनर्परिभाषित करने वाला एक रूपांतरकारी कदम

Ankalan 27/7/2025

1 जुलाई 2025 को देश के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा शुरू की गई यह नीति, 2001 की राष्ट्रीय खेल नीति का स्थान लेती है। यह नीति 2047 तक भारत को वैश्विक खेल महाशक्ति बनाने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के अनुरूप तैयार की गई है, जिसमें 2036 ओलंपिक की मेज़बानी पर विशेष ध्यान है। यह नीति पाँच स्तंभों पर आधारित रणनीतिक रोडमैप प्रस्तुत करती है: वैश्विक मंच पर उत्कृष्टता, आर्थिक विकास हेतु खेल, सामाजिक विकास हेतु खेल, जन आंदोलन के रूप में खेल और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के साथ एकीकरण। यह लेख इस नीति के संभावित प्रभाव का विश्लेषण करता है और इसके सफल क्रियान्वयन हेतु जमीनी सुझाव प्रस्तुत करता है।
,  एक दूरदर्शी पहल
,  खेलो भारत नीति - 2025 एक साहसिक पहल के रूप में सामने आई है, जो अपने पूर्ववर्ती की तुलना में खेलों को राष्ट्र निर्माण के एक बहुआयामी उपकरण के रूप में पहचानती है। भारत की वैश्विक आकांक्षाओं के साथ मेल खाती तारीख पर लॉन्च की गई यह नीति देश की युवा आबादी (मध्यम आयु 28 वर्ष) को समग्र विकास के आधार के रूप में उपयोग करती है। 2036 ओलंपिक की मेज़बानी के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, यह नीति प्रतिभा विकास, आधारभूत संरचना और समावेशिता की ऐतिहासिक कमियों को दूर करने के लिए व्यापक ढांचा प्रस्तुत करती है। यह समयानुकूल पहल भारत की वर्तमान प्रगति के साथ तालमेल बनाते हुए, खेल को आर्थिक वृद्धि, सामाजिक एकता और शैक्षिक सुधार के उत्प्रेरक में बदलने का मार्ग प्रशस्त करती है।
,  वैश्विक मंच पर उत्कृष्टता
,  इस स्तंभ का उद्देश्य जमीनी स्तर से लेकर उच्च स्तरीय खेलों तक की संपूर्ण प्रणाली को मज़बूत कर अंतरराष्ट्रीय खेलों में भारत की स्थिति को सुदृढ़ करना है। राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिभा पहचान और समावेशी आधारभूत संरचना पर ज़ोर देना महत्वपूर्ण कदम है, विशेषकर भारत के सीमित ओलंपिक पदकों को देखते हुए। ब्लॉक स्तर पर सामुदायिक भागीदारी और नियमित टैलेंट स्काउटिंग कैंप के माध्यम से दूरदराज के क्षेत्रों से चैंपियन सामने लाने का प्रयास है। लेकिन इस स्तंभ की सफलता निरंतर वित्तपोषण और प्रशिक्षित कोच की उपलब्धता जैसी चुनौतियों को पार करने पर निर्भर करती है। बिना स्पष्ट समयसीमा के, अधोसंरचना का विकास असमान रह सकता है, जैसा कि अतीत की ‘खेलो इंडिया’ जैसी योजनाओं में देखा गया है।
,  आर्थिक विकास हेतु खेल
,  दूसरा स्तंभ खेलों को आर्थिक विकास का साधन मानता है, जिसके अंतर्गत खेल पर्यटन, ‘मेक इन इंडिया’ के तहत उपकरण निर्माण और खेल स्टार्टअप व उद्यमिता को बढ़ावा देने वाली योजनाएं शामिल हैं। अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट की मेज़बानी से पर्यटन राजस्व और रोजगार बढ़ सकता है, जबकि स्थानीय विनिर्माण क्षेत्र नवाचार और रोज़गार के नए अवसर ला सकता है। केंद्रीय खेल मंत्री मनसुख मांडविया के अनुसार, “हम एक ऐसा खेल पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं जो न केवल विश्व स्तरीय एथलीट पैदा करे बल्कि निजी क्षेत्र की भागीदारी से आर्थिक विकास को भी गति दे।” 40 से अधिक कंपनियों द्वारा ओलंपिक खेलों को अपनाना इसी PPP मॉडल की सशक्त झलक है। हालांकि, खेल परिसंपत्तियों की वित्तीय स्थिरता और स्टार्टअप की विस्तारणीयता अभी प्रमाणित नहीं है। 2047 तक इस आर्थिक क्षमता को साकार करने हेतु निजी निवेश के लिए प्रोत्साहन और प्रभावी निगरानी आवश्यक है।
,  सामाजिक विकास हेतु खेल
,  तीसरे स्तंभ में महिलाओं, जनजातीय समुदायों और दिव्यांगजनों जैसे वंचित वर्गों के लिए समर्पित सुविधाओं और लीगों के माध्यम से सामाजिक समावेशन को प्राथमिकता दी गई है। पारंपरिक खेलों का संवर्धन और अंतरराष्ट्रीय खेल आदान-प्रदान, भारत की सांस्कृतिक शक्ति को बढ़ाने और कूटनीतिक संबंधों को सुदृढ़ करने में सहायक है। यह समावेशी दृष्टिकोण युवाओं में आत्मविश्वास और जुड़ाव की भावना को बढ़ा सकता है, लेकिन इसके लिए सांस्कृतिक बाधाओं को दूर करने और संसाधनों के न्यायसंगत वितरण की आवश्यकता है। इस क्षेत्र में नीति की सफलता निरंतर सामुदायिक भागीदारी और भेदभाव विरोधी प्रभावी क्रियान्वयन पर निर्भर है।
,  जन आंदोलन के रूप में खेल
,  यह स्तंभ खेल को एक जन-आंदोलन के रूप में देखता है, जिसमें “खेलो भारत स्टेप्स अ डे चैलेंज” और फिटनेस रैंकिंग सिस्टम जैसी पहल शामिल हैं। इसका उद्देश्य शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना और खेलों को शिक्षा व अवकाश का हिस्सा बनाना है। राष्ट्रीय खेल महासंघों (NSFs) की स्कूलों के साथ भागीदारी और ब्लॉक स्तर पर सोशल स्पोर्ट्स हब का निर्माण इस दिशा में सकारात्मक कदम हैं। हालांकि, शहरी-ग्रामीण असमानताओं और अनुपयोगी सुविधाओं की समस्या बनी हुई है। सामुदायिक कार्यक्रमों के ज़रिये भागीदारी को बढ़ावा देना आवश्यक है ताकि 2047 तक खेल एक सामाजिक परंपरा बन सके।
,  NEP 2020 के साथ एकीकरण
,  यह स्तंभ शिक्षा में खेल के एकीकरण पर केंद्रित है, जिसके तहत स्कूल पाठ्यक्रमों और शिक्षक प्रशिक्षण में खेलों को अनिवार्य किया गया है। इसका उद्देश्य प्रारंभिक आयु से खेल-केंद्रित संस्कृति को विकसित करना है। स्थानीय खेल संगठनों के साथ भागीदारी और शैक्षणिक परिवेश में प्रतिभा को बढ़ावा देने से शुरुआती हस्तक्षेप की आवश्यकता पूरी होगी। हालांकि, ग्रामीण स्कूलों में आवश्यक अधोसंरचना और प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी इस प्रयास में बाधा बन सकती है। एक चरणबद्ध क्रियान्वयन रणनीति और पर्याप्त संसाधनों की व्यवस्था आवश्यक है ताकि यह एकीकरण शिक्षा और खेल दोनों के विकास में सहायक हो।

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