मोदी 3.0 के पहले 100 दिनों में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं : मनोहर लाल

Ankalan 24/9/2024

नई दिल्ली : केंद्रीय विद्युत और आवासन एवं शहरी कार्य मंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कुशल नेतृत्व में ऊर्जा मंत्रालय ने नई सरकार के पहले 100 दिनों में उल्लेखनीय सफलताएं प्राप्त की हैं।"
,  केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने कहा कि मंत्रालय ने ऊर्जा क्षेत्र के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, क्षमता बढ़ाने, कनेक्टिविटी बढ़ाने और अंतर्राष्ट्रीय पहुंच का विस्तार करने के दृष्टिकोण के साथ अपनी 100 दिनों की योजना तैयार की है।
,  केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने कहा कि इस अवधि के दौरान विद्युत क्षेत्र में प्राप्त उपलब्धियां नीतिगत सुधारों और नई पहलों की शुरुआत पर मंत्रालय के ध्यान केंद्रित करने का प्रमाण हैं, जो भारत के विद्युत क्षेत्र को मजबूत और सशक्त बनाने में लंबा सफर तय करेगा।
,  केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने कहा कि नेशनल इलेक्ट्रिसिटी प्लान 2023 से 2032 तक के लिए केंद्र और राज्य ट्रांसमिशन सिस्टम को अंतिम रूप दिया गया है। इस योजना का उद्देश्य 2032 तक 458 गीगावाट की पीक डिमांड को पूरा करना है।
,  पिछली योजना 2017-22 के तहत, सालाना लगभग 17,700 किलोमीटर लाइन और 73 जीवीए परिवर्तन क्षमता जोड़ी गई थी। नई योजना के तहत, देश में ट्रांसमिशन नेटवर्क का विस्तार 2024 में 4.85 लाख किलोमीटर से बढ़ाकर 2032 में 6.48 लाख किलोमीटर किया जाएगा। इसी अवधि के दौरान परिवर्तन क्षमता 1,251 जीवीए से बढ़कर 2,342 जीवीए हो जाएगी।
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,  वर्तमान में संचालित 33.5 गीगावाट के अलावा 33.25 गीगावाट क्षमता की नौ हाई वोल्टेज डायरेक्ट करंट (एचवीडीसी) लाइनें जोड़ी जाएंगी। अंतर-क्षेत्रीय स्थानांतरण क्षमता 119 गीगावाट से बढ़कर 168 गीगावाट हो जाएगी। यह योजना 220 केवी और उससे ऊपर के नेटवर्क को शामिल करती है।
,  केंद्रीय मंत्री ने जानकारी दी कि योजना की कुल लागत 9.15 लाख करोड़ रुपये है। यह योजना बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने, ग्रिड में आरई एकीकरण और ग्रीन हाइड्रोजन लोड को सुविधाजनक बनाने में मदद करेगी।
,  केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि 50 गीगावाट आईएसटीएस क्षमता को मंजूरी दी गई है। 2030 तक 335 गीगावाट की ट्रांसमिशन नेटवर्क का उपयोग 280 गीगावाट परिवर्तनशील नवीकरणीय ऊर्जा (वीआरई) को अंतरराज्यीय ट्रांसमिशन सिस्टम (आईएसटीएस) तक पहुंचाने के लिए योजना बनाई गई है।
,  इसमें से 42 गीगावाट पहले ही पूरा हो चुका है, 85 गीगावाट निर्माणाधीन है, और 75 गीगावाट निविदा प्रक्रिया में है। शेष 82 गीगावाट को समय पर मंजूरी दे दी जाएगी।
,  बीते 100 दिनों के दौरान 50.9 गीगावाट क्षमता वाली ट्रांसमिशन योजनाओं को मंजूरी दी गई है। स्वीकृत परियोजनाओं की कुल अनुमानित लागत 60,676 करोड़ रुपये है।
,  इन स्वीकृतियों में गुजरात (14.5 गीगावाट आरई), आंध्र प्रदेश (12.5 गीगावाट आरई), राजस्थान (7.5 गीगावाट आरई), तमिलनाडु (3.5 गीगावाट आरई), कर्नाटक (7 गीगावाट आरई), महाराष्ट्र (1.5 गीगावाट आरई), मध्य प्रदेश (1.2 गीगावाट थर्मल पावर), जम्मू और कश्मीर (1.5 गीगावाट जलविद्युत), और छत्तीसगढ़ (1.7 गीगावाट) के लिए ट्रांसमिशन सिस्टम शामिल हैं।
,  स्वीकृत ट्रांसमिशन सिस्टम में गुजरात और तमिलनाडु में आफशोर विंड पावर सहित नवीकरणीय बिजली की निकासी शामिल है। यह इन राज्यों में योजनाबद्ध ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया परियोजनाओं की बिजली आवश्यकताओं का सहयोग करेगा, साथ ही महाराष्ट्र में पंप स्टोरेज क्षमता भी प्रदान करेगा। इसके अतिरिक्त, स्वीकृत प्रणाली जम्मू एवं कश्मीर से जलविद्युत और मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से थर्मल पावर की निकासी को सुगम बनाएगी।
,  एक और प्रमुख उपलब्धि पर प्रकाश डालते हुए, केंद्रीय मंत्री श्री मनोहर लाल ने बताया कि दूरदराज और सुदूर क्षेत्रों में स्थित 83596 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) के घरों तक बिजली पहुंचायी गई है।
,  कृषि फीडरों पर बोलते हुए, केंद्रीय मंत्री ने बताया कि 80,631 फीडरों में से, 49,512 कृषि फीडर जहां कृषि भार 30 प्रतिशत से अधिक है, उन्हें पहले ही अलग कर दिया गया है। शेष 31,119 व्यवहारिक फीडरों को अलग करने की मंजूरी किसानों को दिन में सुनिश्चित बिजली आपूर्ति प्रदान करने के लिए दी गई है।
,  केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इसकी लागत 43,169 करोड़ रुपये है।
,  केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने कहा कि बिजली क्षेत्र के लिए एक विशेष कंप्यूटर सिक्यूरिटी इन्सीडेंट रिस्पांस टीम (सीएसआईआरटी-पावर) स्थापित किया गया है। यह सुविधा उन्नत बुनियादी ढांचे, अत्याधुनिक साइबर सुरक्षा उपकरण और प्रमुख संसाधनों से सुसज्जित है, सीएसआईआरटी-पावर अब बिजली क्षेत्र में उभरते साइबर खतरों का सामना करने के लिए अच्छी तरह से तैयार है।
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,  केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने कहा कि ईवी चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए संशोधित दिशानिर्देश, "इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर-2024 की स्थापना और संचालन के लिए दिशानिर्देश" एक राष्ट्रव्यापी कनेक्टेड व इंटरऑपरेबल ईवी चार्जिंग नेटवर्क के निर्माण में सहयोग करने के लिए जारी किए गए हैं।
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,  इन दिशानिर्देशों के तहत प्रावधान भविष्य की ईवी चार्जिंग मांग को पूरा करने के लिए ईवी चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में तेजी लाने के लिए एक ब्लूप्रिंट के रूप में काम करते हैं। इससे 2030 तक चार्जिंग स्टेशनों की संख्या बढ़कर लगभग 1 लाख होने में मदद मिलेगी। दिशानिर्देशों की प्रमुख विशेषताओं में शामिल हैं:
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,  i. चार्जिंग के लिए बिजली कनेक्शन देने की मानक प्रक्रिया और समय सीमा।
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,  ii. ईवी चार्जर के अंतरसंचालन को सक्षम करने के लिए खुले संचार प्रोटोकॉल का उपयोग।
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,  iii. शहरी क्षेत्रों और राजमार्गों के किनारे सार्वजनिक ईवी चार्जिंग स्टेशनों के लिए स्थानों के सही चयन के लिए मानदंड।
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,  iv. चार्जिंग शुल्क संरचना में पारदर्शिता: वित्तीय वर्ष 2028 तक आपूर्ति की औसत लागत (एसीओएस) पर बिजली टैरिफ का सीमांकन; सोलर घंटों के दौरान टैरिफ सब्सिडी चार्जिंग एसीओएस के 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 30 प्रतिशत कर दी गई।
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,  v. चार्जिंग व्यवसाय को व्यवहारिक बनाने के लिए सुधार।
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,  vi. उपयोगकर्ताओं और ईवी चार्जर के लिए सुरक्षा और कनेक्टिविटी आवश्यकताओं को निर्दिष्ट किया गया है।
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,  vii. वाहन से ग्रिड डिस्चार्जिंग, पैंटोग्राफ चार्जिंग जैसी नवीन तकनीकों के उपयोग को बढ़ावा देना।
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,  उन्होंने यह कहा कि भारत ने दो नए बिल्डिंग कोड पेश करके एक हरित भविष्य की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है: वाणिज्यिक भवनों के लिए ऊर्जा संरक्षण सस्टेनबल बिल्डिंग कोड (ईसीएसबीसी) और आवासीय भवनों के लिए इको निवास संहिता (ईएनएस)। संशोधित कोड बड़े वाणिज्यिक भवनों और बहुमंजिला आवासीय परिसरों पर लागू होते हैं जिनका कनेक्टेड बिजली भार 100 किलोवाट या अधिक है, जिसका अर्थ है कि कोड बड़े कार्यालयों, शॉपिंग मॉल और अपार्टमेंट इमारतों को प्रभावित करेंगे और बिजली की खपत में 18% की और कमी करने में मदद करेंगे। इसके अतिरिक्त, इसमें प्राकृतिक कूलिंग, वेंटिलेशन, पानी और अपशिष्ट जल निपटारे से संबंधित टिकाउ सुविधाओं को शामिल किया गया है। राज्य इन बिल्डिंग कोड को अपना सकते हैं।
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,  केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने कहा कि भारत में 184 गीगावाट से अधिक की पंप स्टोरेज प्रोजेक्ट (पीएसपी) क्षमता है। उन्होंने कहा कि हमने 2030 तक भंडारण और ग्रिड स्थिरता आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 39 गीगावाट पीएसपी क्षमता जोड़ने की योजना बनाई है। वर्तमान में, 4.7 गीगावाट स्थापित किया गया है। लगभग 6.47 गीगावाट क्षमता निर्माणाधीन है, 60 गीगावाट सर्वेक्षण और जांच के विभिन्न चरणों में है। अतिरिक्त 3.77 गीगावाट पीएसपी के लिए अनुबंध हाल ही में प्रदान किए गए हैं।
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,  केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने कहा कि हम ऊर्जा दक्षता कमी व्यवस्था (परफॉर्म अचीव ट्रेड स्कीम) में भाग लेने वाले बड़े औद्योगिक उपभोक्ताओं को एक घटे हुए जीएचजी उत्सर्जन वाली व्यवस्था में बदल रहे हैं।
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,  उन्होंने यह भी कहा कि इस परिवर्तन को सुविधाजनक बनाने के लिए, हमने इंडियन कार्बन मार्केट के लिए एक रूपरेखा बनाई है। हमने उत्सर्जन में कमी को सत्यापित करने के लिए उत्सर्जन में कमी के कार्बन सत्यापकों को मान्यता देने के लिए प्रक्रियाएँ भी प्रकाशित की हैं।
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,  यह उपाय ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में कमी के मूल्य निर्धारण और कार्बन क्रेडिट प्रमाण पत्रों की ट्रेडिंग को सक्षम बनाएंगे। हमारा इरादा अनिवार्य क्षेत्रों में प्रमाण पत्रों के ट्रेडिंग को अक्टूबर 2026 तक और स्वैच्छिक क्षेत्रों में अप्रैल 2026 तक चालू करना है।
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,  केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों में 15 गीगावाट जलविद्युत क्षमता के विकास में मदद करने के लिए एक नई केंद्रीय वित्तीय सहायता (सीएफए) योजना को मंजूरी दी गई है। इस योजना के तहत, केंद्र सरकार परियोजना की कुल इक्विटी के 24% तक की इक्विटी सहायता प्रदान करेगी, प्रत्येक परियोजना के लिए अधिकतम 750 करोड़ रुपये जो पूर्वोत्तर राज्यों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए होगा । यह निवेश को सुविधाजनक बनाएगा और स्थानीय लोगों के लिए महत्वपूर्ण प्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा करेगा। कार्यान्वयन अवधि 2024-25 से 2031-32 तक है। कुल लागत 4136 करोड़ रुपये है।
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,  पहले 100 दिनों में जलविद्युत परियोजनाओं और पंप स्टोरेज प्रोजेक्ट (पीएसपी) के लिए सक्षम बुनियादी ढांचे की लागत के लिए बजटीय सहायता के दायरे का विस्तार किया गया है। सड़कों और पुलों के अलावा, सहयोग में अब ट्रांसमिशन लाइनों, रोपवे, रेलवे साइडिंग और संचार बुनियादी ढांचे के लिए वित्तपोषण शामिल है। 200 मेगावाट से अधिक की परियोजनाओं को ₹0.75 करोड़ प्रति मेगावाट का सहयोग प्राप्त होगा, जबकि 200 मेगावाट तक की परियोजनाओं को ₹1 करोड़ प्रति मेगावाट का सहयोग प्राप्त होगा। 1 जुलाई, 2028 से पहले प्रदान की गई 25 मेगावाट से अधिक क्षमता वाली जलविद्युत परियोजनाएं, जिसमें निजी क्षेत्र की परियोजनाएं भी शामिल हैं, इस सहायता के लिए पात्र हैं। कार्यान्वयन अवधि 2024-25 से वित्तीय वर्ष 2031-32 तक है। योजना के लिए कुल परिव्यय ₹12,461 करोड़ है। यह 15 गीगावाट पीएसपी सहित 31 गीगावाट जलविद्युत क्षमता के विकास में सहयोग करेगा।
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,  लोअर अरुण जलविद्युत परियोजना के बारे में बोलते हुए, श्री मनोहर लाल ने कहा कि नेपाल में लोअर अरुण जलविद्युत परियोजना (669 मेगावाट) को अब भारत सरकार द्वारा मंजूरी दे दी गई है। परियोजना की लागत 5792 करोड़ रुपये है। इसे पूरा करने की अवधि 60 महीने है।
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,  जहां भारत ऊर्जा क्षेत्र में परिवर्तन लक्ष्यों को लेकर त्वरित रूप से आगे बढ़ा रहा है वहीं ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना सर्वोपरि है। केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया कि तेजी से विस्तार कर रही अर्थव्यवस्था की पीक डिमांड और बेस लोड आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, ऊर्जा मंत्रालय ने थर्मल क्षमता वृद्धि को प्राथमिकता दी है। वर्तमान में, कुल थर्मल क्षमता: कोयला और लिग्नाइट आधारित 217 गीगावाट पर है। इसके अलावा, 28.4 गीगावाट क्षमता निर्माणाधीन है, जिसमें से 14 गीगावाट क्षमता वित्तीय वर्ष 2025 तक चालू होने की संभावना है। इसके अलावा, 58.4 गीगावाट योजना, वैधानिक मंजूरी और निविदा के विभिन्न चरणों में है। साथ ही, पिछले 100 दिनों में, मंत्रालय ने 12.8 गीगावाट की नई कोयला आधारित थर्मल क्षमता का आवंटन किया है।
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