कम उम्र में गर्भाशय खराब होने से महिलाएं बांझपन की शिकार

Ankalan 30/3/2018

नई दिल्ली। तैंतीस साल की अंकिता (बदला हुआ नाम) शादी के 7 साल बाद भी मां नहीं बन पाई थी। वह मधुमेह और हाइपरथायरोडिज्म से पीडित है। इस जोडे ने आईयूआई के 6 चक्र अपनाए और आईवीएफ का 1 सेल्फ-साइकल चक्र अपनाया। लेकिन सारी कोशिशें व्यर्थ रहीं। फिर जब वे नई दिल्ली में नोवा इवी फर्टिलिटी सेंटर में आए, तो वहां अंकिता की जांच के बाद पता चला कि अंकिता के अंडाशय में अब कोई अंडा शेष नहीं बचा है (उसके एएमएच बहुत कम थे और इसी तरह फॉलीक्यूलर काउंट भी बहुत कम निकले)। इसके बाद अंकिता को डोनर एग्स के साथ आईसीएसआई (की सलाह दी गई। यह उपचार कारगर रहा और आखिरकार अंकिता गर्भधारण करने में कामयाब रही।
,  नोवा इवी फर्टिलिटी, नई दिल्ली में फर्टिलिटी कंसल्टेंट डॉ. पारुल सहगल कहती हैं, ‘‘प्रीमैच्यौर ओवेरियन फेल्योर (पीओएफ) को समय से पूर्व अंडाशय में खराबी आने के रूप में जाना जा सकता है। इसमें कम उम्र में ही (35 वर्ष से कम उम्र में) अंडाशय में अंडाणुओ की संख्या में कमी आ जाती है। सामान्यतः महिलाओं में 40-45 वर्ष की उम्र तक अंडे बनते रहते हैं। यह रजोनिवृत्ति से पहले की औसत आयु है। पीओएफ के मामलो में महिलाओं में तीस वर्ष की उम्र में ही अंडाणु नहीं मिलते हैं।‘‘
,  अनुसंधान से पता चलता है कि लगभग 1-2 प्रतिशत भारतीय महिलाएं 29 से 34 साल के बीच रजोनिवृत्ति के लक्षणों का अनुभव करती हैं। इसके अतिरिक्त, 35 से 39 साल की उम्र के बीच महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा 8 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। नोवा इवी फर्टिलिटी और इवी, स्पेन द्वारा किए गए एक अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया है कि कोकेशियन महिलाओं की तुलना में भारतीय महिलाओं की ओवरीज छह साल अधिक तेज है। इसके बारे में निहितार्थ बहुत गंभीर हैं - इन दिनों जोड़े पश्चिम का अंधानुकरण कर रहे हैं और देरी से विवाह करते हैं और इसी तरह गर्भधारण भी देर से करते हैं, वे इस बात से अनजान हैं कि भारतीय महिलाओं की जैविक घड़ी तेजी से टिक-टिक कर रही है।
,  डॉ. पारुल सहगल आगे कहती हैं, ‘‘बांझपन, या स्वाभाविक रूप से गर्भधारण करने में असमर्थता, पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान रूप से प्रभावित करती है। आम तौर पर एक प्रचलित गलत धारणा है कि बांझपन सिर्फ महिलाओं की समस्या है। पुरुष बांझपन की घटनाएं बढ़ रही हैं और ऐसा उन शहरों में बड़े पैमाने पर हो रहा है जहां लोग तनावपूर्ण जीवनशैली से गुजर रहे हैं। बांझपन के लगभग 45 प्रतिशत मामलों में पुरुष कारक पाया जाता है। कई मामलों में पुरुषों से जुडी प्रजनन समस्याओं का पता नहीं चल पाया और न ही इलाज किया गया, क्योंकि या तो उनके साथी पर ध्यान केंद्रित किया गया या पुरुष ऐसे मामलों मंे कोई मदद हासिल करने में खुश नहीं होते हैं या फिर वे इसे सही समय पर ढूंढने में असमर्थ होते हैं।‘‘
,  प्रीमैच्यौर ओवेरियन फेल्योर (पीओएफ) के कारण और लक्षण
,  जब अंडाशय खराब हो जाते हैं तो वे पर्याप्त मात्रा में एस्ट्रोजन हार्मोन पैदा नहीं करते या नियमित तौर पर अंडाणु नहीं देते। अंडाशय में अंडाणुओं की संख्या में कमी से महिलाओं प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है और उनका गर्भवती हो पाना मुश्किल हो जाता है। जीवनशैली से जुडे बदलाव जैसे धूम्रपान, गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल, अंडाशय की पहले हुई कोई सर्जरी, कैंसर रोकने के लिए की गई थैरेपी और पारिवारिक पीओएफ आदि कुछ ऐसे जाने-पहचाने कारण हैं, जिनके कारण कम उम्र में अंडाणुओं की संख्या में कमी आ जाती है।
,  पीओएफ के कुछ ज्ञात कारणों में पूर्व में की गई सर्जरी, एंडोमेट्रियोसिस, पॉलीसिस्टिक अंडाशय के लिए एक्सेसिव ड्रिलिंग आदि हैं। एक्स गुणसूत्र असामान्यताएं, ऑटोसोमल कारण, गैलेक्टोसीमिया, ऑटोइम्यून डिसऑर्डर, कैंसर उपचार, टर्नर सिंड्रोम, एंजाइम डिफेक्ट्स, और एन्वायर्नमेंटल टाॅक्सिन्स भी कुछ अन्य ऐसे कारक हैं, जिनकी वजह से रजोनिवृत्ति की अवस्था जल्द आ जाती है। कुछ मामलों में, पीओएफ आनुवंशिक हो सकता है और कई परिवारों में चल सकता है। कई मामलों में, कोई कारण नहीं मिल पाया (आइडियोपैथिक)।
,  पीओएफ का एक अन्य लक्षण मासिक नहीं होना या समय पर नहीं होना भी है। कई बार किसी महिला को नियत समय पर मासिक हो रहा है तो कई बार अगले कुछ महीनों में मासिक आएगा ही नहीं। उनमें रजोनिवृत्ति के अन्य लक्षण जैसे रात में पसीना आना, नींद न आना, तनाव, मूड मंे जल्द बदलाव, योनि में सूखापन, ताकत में कमी, सेक्स की इच्छा कम होना, सम्भोग के समय दर्द और ब्लैडर कंट्रोल में समस्या जैसे लक्षण भी नजर आ सकते हैं।
,  1.32 बिलियन लोगों के देश में माना जा रहा है कि करीब 30 मिलियन दम्पति निस्संतानता की समस्या से परेशान हैं। इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि कम उम्र की महिलाओं में निस्संतानता की समस्या आ रही है। बांझपन की जो समस्या पहले अधिक उम्र की महिलाओं में पाई जाती थी, वह अब 35 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में भी दिख रही है। ऐसे में 20-30 वर्ष की जिन महिलाओ को गर्भधारण करने में समस्या आ रही है, उन्हें तुरंत किसी फर्टीलिटी विशेषज्ञ को दिखाना चाहिए। सही समय पर रोग का पता चल जाए तो बेहतर उपचार हो सकता है।
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