संस्कृत केवल प्राचीन परंपरा की भाषा नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण और वैचारिक स्पष्टता का माध्यम भी है : ओम बिरला
लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने गौरवशाली संस्कृत भाषा के शाश्वत महत्व की सराहना करते हुए कहा कि यह केवल हमारी प्राचीन परंपरा की भाषानहीं, बल्कि बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण और वैचारिक स्पष्टता का माध्यम भी है।उन्होंने कहा कि आज जब भारत योग, आयुर्वेद और दर्शन के माध्यम से विश्व में सम्मान प्राप्त कर रहा है, ऐसे समय में नई पीढ़ी को संस्कृत से जोड़नाआवश्यक है। बिरला ने यह टिप्पणी आज जयपुर में जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के सातवें दीक्षांत समारोह में की।
,  बिरला ने कहा कि ऐसे समय में जब विश्व के प्रमुख विश्वविद्यालयों में संस्कृत पर शोध हो रहे हैं, ऐसे में भारत में भी इसे नवाचार, तकनीक और
,  डिजिटल युग से जोड़ना चाहिए।उन्होंने विश्वविद्यालय द्वारा योग की वैज्ञानिक शिक्षा प्रदान किए जाने, प्राचीन पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण करने और ऑनलाइन पाठ्यक्रमों की
,  शुरूआत करने जैसी अग्रणी पहलों की सराहना की और इन्हें सांस्कृतिक पुनरुत्थान की दिशा में दूरदर्शी कदम बताया।
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,  विश्वविद्यालय की स्थापना के बारे में बात करते हुए बिरला ने कहा कि परम पूज्य नारायणदास जी महाराज के ओजस्वी मार्गदर्शन में तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत जी ने इस संस्थान की परिकल्पना की थी।उन्होंने स्नातक विद्यार्थियों से संस्कृत के राजदूत की भूमिका निभाने तथा भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा का प्रचार-प्रसार पूरी दुनिया में करने का आग्रह किया।
,  इस अवसर पर बिरला ने विश्वविद्यालय के मेधावी विद्वानों को उपाधियां तथा स्वर्ण पदक प्रदान किए।स्वामी स्वामी अवधेशानंद गिरि को ‘विद्या वाचस्पति’ की उपाधि से सम्मानित किया गया।प्रतिष्ठित जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय का सातवां दीक्षांत समारोह जयपुर में राजस्थान अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में सम्पन्न हुआ।राजस्थान के राज्यपाल, हरिभाऊ बागड़े तथा राजस्थान के शिक्षा एवं पंचायती राज मंत्री, मदन दिलावर भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए।